praise the lord. Importance of the right Decisions, Learn from Adam and Eve story.
प्रियों मनुष्य के जीवन में निर्णय एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रत्येक निर्णय हमें या तो परमेश्वर के करीब ले जा सकता है, या हमें उनसे दूर ले जा सकता है. और जीवन में हर किसी को छोटे बड़े निर्णय लेने ही पड़ते हैं, क्योंकि ये हमारी यात्रा की दिशा तय करते हैं. इसीलिए हमें अपने निर्णयों में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. क्योंकि जब हम अपनी बुद्धि और समझ के साथ बिना सोचे समझे निर्णय लेते हैं, तब अक्सर गलतियां कर बैठते हैं। और भावनात्मक आवेश में लिए गए निर्णय कभी-कभी विनाशकारी भी साबित होते हैं। इसके परिणामस्वरूप हमें कठिनाइयों, असफलताओं, या दुखों का सामना करना पड़ता हैं।
प्रियों इस सन्दर्भ में, आज हम बाइबल की एक महत्वपूर्ण कहानी को देखेंगे. जहाँ हम देखते है की कैसे उनके एक निर्णय ने पूरी मानवता को पाप के जाल में डाल दिया और उनके एक निर्णय ने परमेश्वर के साथ उनके संबंध को भी प्रभावित किया. तो प्रियों आप जान गए होंगे की यह कहानी किस की है प्रियों यह कहानी है आदम और हव्वा की.
प्रियों उन्होंने एक ऐसा निर्णय लिया, जिससे परमेश्वर और उनके बीच दरार पैदा हो गई. एक ऐसा निर्णय जिसने उनके और परमेश्वर के बीच दूरी बना दी, एक ऐसा निर्णय जिससे उन्हें स्वर्गीय जीवन त्यागना पड़ा. एक ऐसा निर्णय जिससे संसार में पाप और मृत्यु ने प्रवेश किया.
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प्रियों आप सब आदम हव्वा की इस घटना से वाकिफ हैं, लेकिन फिर भी मैं संक्षिप्त में दोहराना चाहूँगा. आदम हव्वा की यह कहानी उत्पति अध्याय 3 में दर्ज हैं.
Importance of the right Decisions
प्रियों जब परमेश्वर ने सृष्टि की रचना की, तब यह पूरी तरह से सुंदर और पवित्र थी. इसके केंद्र में अदन वाटिका के रूप में एक विशेष स्थान था. अदन वाटिका धरती पर सबसे अद्भुत स्थान था। यह परमेश्वर की विशेष रचना थी, जिसे उसने मनुष्य के लिए बसाया था। इस बाग़ में हर प्रकार के फलदार पेड़, सुगंधित फूल, और हरे-भरे पौधे थे। यह बाग़ जीवन से भरा था।
परमेश्वर ने इस बाग़ को इतना सुंदर बनाया था कि यहाँ किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी। इसमें सोने और बहुमूल्य रत्नों का भंडार था। इस बाग़ में शांति, समृद्धि और सौंदर्य का साम्राज्य था। बाग़ की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि परमेश्वर ने इस के मध्य में “जीवन का वृक्ष” और “अच्छे बुरे के ज्ञान का वृक्ष” के रूप में विशेष वृक्ष भी लगाए थे। ये वृक्ष बाग़ के बीच में स्थित थे और इनका महत्व अद्वितीय था।
और जब परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया तब उसे इसी अदन की वाटिका (Garden of Eden) में रहने के लिए रखा। परमेश्वर ने मनुष्य को अपनी “छवि और समानता” में बनाया. सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने मनुष्य को यानी आदम हव्वा को सोचने, प्रेम करने, और निर्णय लेने की क्षमता दी.
और साथ में स्वतंत्रता और उत्तरदायित्व भी दिया—उन्हें धरती पर प्रभुता करने का अधिकार और सभी जीवों की देखभाल करने की जिम्मेदारी भी सौंपी. बगीचे में हर प्रकार के फलदार वृक्ष थे, जिनसे आदम और हव्वा अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते थे।
परमेश्वर ने उन्हें वाटिका के सभी पेड़ों के फल खाने की अनुमति दी, लेकिन उन्हें भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष” (Tree of the Knowledge of Good and Evil) के फल खाने से मना किया, और साथ में आगाह भी किया कि, जिस दिन तुम उस वृक्ष का फल खाओगे उस दिन निश्चय ही मर जाओगे.
शुरुआत में सबकुछ परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप होता गया. परमेश्वर हररोज उन्हें मिलने आता, उनसे बात करता और उनकी हालचाल जानता. इसतरह सभी जीवों और मनुष्य के साथ साथ परमेश्वर भी अपनी बनाई हुई दुनिया से बहुत खुश था. लेकिन कोई और था जो मनुष्य और परमेश्वर के बीच के इस सौहार्दपूर्ण संबंध से नाखुश था. वह था शैतान.
शैतान ने एक सर्प के रूप में आकर हव्वा को प्रलोभन दिया, और परमेश्वर की आज्ञा को चुनौती दी. उसने हव्वा को विश्वास दिलाया कि यदि वह उस फल को खाएगी तो वह परमेश्वर की तरह ज्ञानवान बन जाएगी। और यह भी कहा कि वे कभी नहीं मरेंगे। शैतान की बातें सुनकर हव्वा के मन में संशय उत्पन्न हुआ और उसने परमेश्वर के निर्देशों को न मानने का निर्णय लिया।
हव्वा ने शैतान के दिए इस प्रलोभन में आकर अपनी इच्छा और बुद्धि के अनुसार निर्णय लिया। उसने सोचा कि यह फल उसे ज्ञान देगा और परमेश्वर के समान बना देगा। इसी कारण उसने फल को खा लिया और आदम को भी खाने के लिए दिया।
जब उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए उस फल को खाया तो उनकी आँखें खुल गईं और उन्हें अपने नग्न होने का अहसास हुआ, जिससे वे शर्मिंदा हो गए और उन्होंने अंजीर के पत्तों से अपने शरीर को ढक लिया। जब परमेश्वर ने देखा कि उन्होंने आज्ञा का उल्लंघन किया है, तो उसने उन्हें अदन की वाटिका से बाहर निकाल दिया.
प्रियों उस फल को खाते ही आदम हव्वा की निर्दोषता समाप्त हो गई और वे पाप के बोध से भर गए. आदम और हव्वा का यह निर्णय न केवल उनके लिए, बल्कि संपूर्ण मानवजाति के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। पाप के कारण, मृत्यु और पीड़ा का संसार में आगमन हुआ। आदम और हव्वा के इस निर्णय ने संपूर्ण मानव जाति को पाप के अधीन कर दिया.
निर्णय के विनाशकारी परिणाम
प्रियों आदम हव्वा द्वारा परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करने का निर्णय केवल एक साधारण गलती नहीं थी, बल्कि यह परमेश्वर के प्रति अविश्वास और प्रलोभन में फंसने का प्रतीक था। आदम और हव्वा का निर्णय केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि पूरी मानव जाति पर विनाशकारी प्रभाव डालता है। उनका पाप मानव जाति की आध्यात्मिक विरासत बन गया.
प्रियों इस एक निर्णय के कारण कई गंभीर परिणाम हुए: जिसमें से मैं आपके सामने 5 पॉइंट रखता हूँ.
1. पाप का प्रवेश
आदम और हव्वा का पाप केवल एक आज्ञा उल्लंघन नहीं था; यह परमेश्वर के प्रति अविश्वास का संकेत था। इस निर्णय के साथ ही पाप और मृत्यु ने मानव जीवन में प्रवेश किया।
रोमियों 5:12 में पॉलुस कहते हैं;
“इसलिये जैसे एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस प्रकार मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई क्योंकि सब ने पाप किया।”
2. आत्मिक मृत्यु और परमेश्वर से अलगाव
फल खाने के बाद आदम और हव्वा ने महसूस किया कि वे नग्न हैं, जो उनके निर्दोषता के अंत का प्रतीक था यानी आत्मिक मृत्यु थी। उन्होंने खुद को छिपाने की कोशिश की, लेकिन परमेश्वर ने उन्हें खोजा। यह दिखाता है कि पाप मनुष्य को परमेश्वर से दूर कर देता है और लज्जा तथा डर का कारण बनता है। इस निर्णय के साथ ही मनुष्य ने ईश्वर से अलग होने का अनुभव किया और नैतिक पतन की शुरुआत हुई।
3. शारीरिक मृत्यु का आरंभ
पाप से पहले आदम और हव्वा अमर थे, लेकिन पाप के बाद मृत्यु उनके जीवन का हिस्सा बन गई। अब हर मनुष्य को एक दिन मरना ही पड़ता है। रोमियों 6:23 में कहा गया है:
“पाप की मजदूरी मृत्यु है।”
4. जीवन में कठिनाइयों का आगमन
परमेश्वर ने पाप के कारण आदम और हव्वा को दंडित किया। ईश्वर ने आदम से कहा कि अब वह पसीने की कमाई से भोजन प्राप्त करेगा और हव्वा को प्रसव में कष्ट का सामना करना पड़ेगा। इसका तात्पर्य है कि पाप के कारण अब जीवन में कष्ट, संघर्ष और दर्द अनिवार्य हो गए हैं।
5. एदेन के बगीचे से बाहर निकाला जाना
परमेश्वर ने आदम और हव्वा को अदन की वाटिका से बाहर निकाल दिया, जिससे वे अनन्त जीवन के वृक्ष से वंचित हो गए। इसका अर्थ है कि अब मनुष्य को मृत्यु का सामना करना ही पड़ेगा और जीवन संघर्षपूर्ण होगा।
उद्धार का मार्ग
प्रियों आदम और हव्वा का निर्णय विनाशकारी था, उनके एक निर्णय ने उन्हें परमेश्वर से दूर कर दिया था. हालांकि परमेश्वर ने उन्हें पूरी तरह से त्यागा नहीं। परमेश्वर ने आदम और हव्वा को यह एहसास कराया कि उनके पाप का दंड है, परंतु साथ ही परमेश्वर ने उनके लिए प्रायश्चित का मार्ग भी प्रस्तुत किया। उन्होंने उन्हें वस्त्र दिए और मसीह के रूप में उद्धार का वादा किया।
रोमियों 6:23 लिखा है:
“क्योंकि पाप की मजदूरी मृत्यु है; परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।”
यहां पर हम देख सकते हैं कि परमेश्वर का अनुग्रह हमारे निर्णयों से कहीं अधिक बड़ा है। वह हमें प्रायश्चित का अवसर देते हैं और अपने पास वापस बुलाते हैं।
प्रियों परमेश्वर ने मनुष्य को पाप में नहीं छोड़ा, बल्कि मसीह यीशु के माध्यम से उद्धार का मार्ग प्रदान किया।
यूहन्ना 3:16 में कहा गया है:
“क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”
मसीह का बलिदान मनुष्यों के पापों को धोने और उन्हें परमेश्वर से पुनः जोड़ने का उपाय बना।
शिक्षा और सीख : परमेश्वर पर भरोसे की आवश्यकता
तो प्रियों आदम और हव्वा की कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि परमेश्वर के बिना लिए गए निर्णय विनाश की ओर ले जाते हैं। हम अपनी बुद्धि और इच्छाओं के आधार पर निर्णय लेकर परमेश्वर की योजना से भटक सकते हैं। जैसे आदम हव्वा भटक गए.
मनुष्य का ज्ञान सीमित है और उसकी बुद्धि उसे प्रलोभन से दूर नहीं रख सकती। हमारे अपने निर्णय हमें परेशानी में डाल सकते हैं। इसलिए बाइबल हमें सिखाती है कि हमें परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए, न कि अपनी समझ पर।
नीतिवचन 3:5-6 में लिखा है:
“तू सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रख, और अपने समझ पर भरोसा न करना; उस को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।”
परमेश्वर चाहते हैं कि हम अपनी बुद्धि और समझ को एक ओर रखकर उनके मार्गदर्शन में चलें। जब हम अपने निर्णयों को उनके हाथों में सौंपते हैं, तो वे हमें सही मार्ग पर ले जाते हैं।
हर महत्वपूर्ण निर्णय से पहले हमें प्रार्थना करनी चाहिए और परमेश्वर से मार्गदर्शन मांगना चाहिए। यह उनकी इच्छा के अनुसार चलने का सही तरीका है।
फिलिप्पियों 4:6-7 में पौलुस कहता है:
“किसी भी बात की चिन्ता न करो, परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सामने प्रकट किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।”
यह वचन हमें सिखाता है कि हमें अपने सभी निर्णय परमेश्वर के सामने रखने चाहिए और उनकी शांति से मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए।
निष्कर्ष
तो प्रियों आदम और हव्वा का निर्णय हमें सिखाता है कि हमें अपने निर्णयों में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। एक गलत निर्णय न केवल हमारे लिए, बल्कि हमारे प्रियजनों और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी घातक हो सकता है। इसलिए, अपने जीवन में सही मार्ग चुनें, अपने निर्णयों में परमेश्वर का मार्गदर्शन प्राप्त करें, और उनकी इच्छा के अनुसार चलें।
मनुष्य की बुद्धि अक्सर भ्रमित होती है, लेकिन परमेश्वर का मार्गदर्शन सदा सच्चा और सही होता है। इसलिए, हर निर्णय से पहले परमेश्वर से प्रार्थना करें और उनसे सहायता मांगें, क्योंकि वही हमारे जीवन का सही मार्गदर्शक है।
गलत निर्णय जीवन का एक हिस्सा हैं, लेकिन यह अंत नहीं है। जीवन की चुनौतियों और गलतियों के बावजूद, परमेश्वर पर विश्वास रखना हमें शांति, मार्गदर्शन और आशा प्रदान करता है। परमेश्वर हमें न केवल गलतियों से उबरने में सहायता करता है, बल्कि हमें सही दिशा में आगे बढ़ने का साहस भी देता है।
इसलिए, यदि आप कभी किसी गलत निर्णय के कारण निराश महसूस कर रहे हैं, तो परमेश्वर से प्रार्थना करें, उस पर विश्वास रखें और उसकी योजनाओं पर भरोसा करें। वह आपके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन ला सकता है और आपको सही मार्ग पर ले जा सकता है।
परमेश्वर पर विश्वास रखें, क्योंकि वह आपका मार्गदर्शन करेगा और आपके जीवन को आशीर्वाद से भर देगा।
तो प्रियों हम आशा करते है आपको आदम हव्वा की इस कहानी से जरुर सिखने को मिला होगा, जो आपको परमेश्वर के साथ जुड़े रहने में ,मदद करेगा. इस विडियो को लेकर अपने विचार हमारे साथ जरुर शेयर करे. और चैनल को सब्सक्राइब कर ले. ताकि आनेवाले हर जानकारी को जान से सके. धन्यवाद. आमेन
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