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यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ | जानिए परमेश्वर ने अपने पुत्र को क्यों भेजा

यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ – परमेश्वर ने अपने पुत्र को क्यों भेजा? (मानवता के उद्धार की सच्ची कहानी | Why Jesus Was Born in Hindi | Jesus Birth Story in Hindi | Origin and Meaning of Christmas)

Praise the Lord. यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ – परमेश्वर ने अपने पुत्र को क्यों भेजा? (मानवता के उद्धार की सच्ची कहानी | Why Jesus Was Born in Hindi | Jesus Birth Story in Hindi | Origin and Meaning of Christmas)

यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ? Why Jesus Was Born in Hindi

“क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया,
ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्ना 3:16)

प्रस्तावना : यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ?

दुनिया के इतिहास में अनेकों जन्म हुए हैं, राजाओं, भविष्यवक्ताओं, संतों और नेताओं के, परंतु एक जन्म ऐसा हुआ जिसने समय को बाँट दिया, “ईसा पूर्व” और “ईसा पश्चात”। वह जन्म था यीशु मसीह का।

यीशु मसीह का जन्म सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, यह परमेश्वर के प्रेम, क्षमा, और उद्धार की योजना का केंद्र था।क्रिसमस की चरनी उस प्रेम की प्रतीक है, जहाँ अनंत परमेश्वर ने नम्रता का वस्त्र पहनकर मनुष्य के बीच जन्म लिया।

यीशु का जन्म केवल एक बच्चे का संसार में आगमन नहीं था, बल्कि स्वयं परमेश्वर का मनुष्य के रूप में उतरना था, ताकि खोए हुए मनुष्य को फिर से उसके सृष्टिकर्ता से जोड़ सके। पर सवाल अब भी वही है, “क्यों?”

क्या ज़रूरत थी परमेश्वर को इस दुखभरी दुनिया में आने की? क्या वह स्वर्ग से ही क्षमा नहीं दे सकता था? उत्तर सरल नहीं, पर अत्यंत गहरा है, क्योंकि यह उत्तर प्रेम में छिपा है।

यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ? (The Purpose of Jesus Birth)” यह न केवल एक ऐतिहासिक प्रश्न है, बल्कि आत्मा को छू लेने वाला आध्यात्मिक रहस्य भी है।

तो आज के इस लेख में हम इसी ऐतिहासिक प्रश्न का उत्तर आध्यात्मिक रूप में खोजने की कोशिश करेंगे, नीचे मैं आपके लिए यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ? इस पर पूरा लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ, जरुर पढ़े,

मानवता का पतन – जहाँ से शुरू हुई उद्धार की कहानी

शुरुआत में जब कुछ नहीं था, केवल परमेश्वर था और उसका प्रेम। उसी प्रेम ने सृष्टि की नींव रखी। बाइबल में लिखा है, “परमेश्वर ने मनुष्य को अपनी ही छवि में बनाया।” (उत्पत्ति 1:27) और मनुष्य परमेश्वर की संगति में जी रहा था, न भय, न मृत्यु, न पीड़ा, था तो सिर्फ प्रेम।

पर प्रेम का सार है स्वतंत्रता। और इसी स्वतंत्रता में मनुष्य ने चुनाव किया, परमेश्वर की आज्ञा के बजाय अपनी इच्छा को चुनने का। जब आदम और हव्वा ने उस निषिद्ध फल को खाया, उन्होंने सिर्फ एक नियम नहीं तोड़ा, बल्कि परमेश्वर से अपने संबंध को तोड़ दिया।

और इसके साथ ही पाप ने दुनिया में प्रवेश किया और पाप के साथ आई मृत्यु, डर, और असुरक्षा। जो सृष्टि कभी पूर्ण थी, अब टूट चुकी थी। मानवता भटक गई और मनुष्य अपने ही सृष्टिकर्ता से दूर हो चुका था। पाप ने उसे भीतर से तोड़ दिया था, उसका संबंध, उसकी आत्मा, और उसकी आशा सब कमजोर पड़ चुके थे। जैसे बाइबिल कहती है, “सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।” रोमियों 3:23

लेकिन परमेश्वर ने उन्हें दंड नहीं, बल्कि परिणाम बताया: “तू मिट्टी है, और मिट्टी में लौट जाएगा।” (उत्पत्ति 3:19) जिसे हम दंड कहते है, वह दंड नहीं, बल्कि प्रेम की पुकार थी, क्योंकि उसी क्षण से परमेश्वर की योजना आरंभ हुई, मनुष्य को वापस उसके प्रेम में लाने की योजना।

यही था उद्धार की योजना का आरंभ, जहाँ से क्रिसमस की कहानी शुरू होती है। एक ऐसी कहानी, जिसमें स्वर्ग का प्रेम धरती पर उतरता है, जहाँ पाप के अंधकार के बीच एक प्रकाश जन्म लेता है, और जहाँ परमेश्वर स्वयं कहता है, “मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगा।”

और तब परमेश्वर ने अपने प्रेम से यह निश्चय किया, कि वह स्वयं मनुष्य का रूप लेकर आएगा, ताकि मनुष्य को पाप और मृत्यु से मुक्ति दे सके। यहीं समझ आता है की “यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ?” लेकिन आगे कुछ खास है,

मनुष्य की असहायता – जब कोई मार्ग शेष नहीं रहा

सदियों तक मानवता ने ईश्वर तक पहुँचने की कोशिश की। कभी धर्म, कभी कर्म, कभी बलिदान पर कुछ भी आत्मा की प्यास नहीं बुझा सका। बलिदान दिए गए, मंदिर बने, नियम बनाए गए पर मनुष्य का हृदय पाप की जंजीरों में बँधा रहा।

बाइबल कहती है, “सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।” (रोमियों 3:23) यानी कोई भी ऐसा नहीं जो अपने प्रयासों से परमेश्वर तक पहुँच सके। मनुष्य का धर्म उसे पवित्र दिखा सकता था, पर उद्धार नहीं दे सकता था। परमेश्वर ने देखा कि उसका बनाया हुआ मनुष्य खो गया है। तब परमेश्वर ने मनुष्य को फिर से उसकी संगती में लाने की योजना बनाई।

यही से उद्धार की योजना शुरू हुई, एक ऐसी योजना जो किसी नियम या रिवाज़ से नहीं, बल्कि प्रेम और बलिदान से पूरी होनी थी।

वह जानते थे कि मनुष्य अपने पापों से स्वयं नहीं निकल सकता। कितने ही नियम, बलिदान और प्रार्थनाएँ की जाएँ, परंतु सच्ची मुक्ति के लिए निर्दोष बलिदान की आवश्यकता थी। बाइबिल उद्धारकर्ता को मेमने के रूप में बताती “देखो, परमेश्वर का मेम्ना, जो संसार के पाप उठा ले जाता है।”( यूहन्ना 1:29)

यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ? तो यीशु का जन्म इसी कारण हुआ, ताकि वे स्वयं हमारे पापों का बोझ लेकर क्रूस तक जाएँ, और अपने लहू के द्वारा हमें क्षमा दें। उनका जन्म, जीवन, और मृत्यु ये सब एक ही उद्देश्य की ओर इंगित करते हैं: मानवता का उद्धार।

2. बेथलेहम की रात – यीशु का जन्म

वह रात शीतल थी, परंतु स्वर्ग गर्मजोशी से भरा हुआ था। ठंडी हवाओं में एक अनोखी गर्माहट थी। चरवाहे अपनी भेड़ों की रखवाली कर रहे थे, और अचानक स्वर्ग के द्वार खुल गए। और स्वर्गदूतों ने घोषणा की, “डरो मत! देखो, मैं तुम्हें बड़े आनन्द का समाचार सुनाता हूँ, क्योंकि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिए उद्धारकर्ता जन्मा है, जो मसीह प्रभु है।” (लूका 2:10–11)

वह जन्म हुआ न किसी महल में, बल्कि एक चरनी में, जहाँ गाय और गधे की साँसे चल रही थीं, जहाँ मिट्टी की गंध और स्वर्ग की उपस्थिति एक साथ थी। सोचिए, परमेश्वर का पुत्र, जो तारों का निर्माता है, वह चरनी में लेटा है! क्योंकि वह हमें यह सिखाने आया था कि विनम्रता में ही दिव्यता बसती है। यीशु का उद्देश्य धन, वैभव या सत्ता नहीं था, बल्कि नम्रता और प्रेम सिखाना था।

वह शिशु जो चरनी में पड़ा था, राजाओं का राजा था, शांति का राजकुमार था। उसका जन्म इस बात का प्रतीक था कि परमेश्वर अब दूर नहीं रहा, वह हमारे बीच है। यीशु के माध्यम से परमेश्वर ने मनुष्य को कहा, “मैं तुझसे प्रेम करता हूँ, और तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा।”

यही कारण है कि क्रिसमस सिर्फ खुशी का नहीं, बल्कि उद्धार की शुरुआत का पर्व है।

यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ – उद्धार का कारण

यीशु के जन्म में परमेश्वर का प्रेम स्पष्ट झलकता है। उन्होंने गरीबों, बीमारों, पापियों और तिरस्कृत लोगों को गले लगाया, क्योंकि उनका उद्देश्य था, हर टूटे दिल को चंगा करना। बाइबिल में लिखा है, “वह यहोवा का आत्मा मुझ पर है, क्योंकि उसने मुझे अभिषेक किया है, कि मैं कंगालों को सुसमाचार सुनाऊँ।” (लूका 4:18)

यीशु इसलिए नहीं आए कि वे शक्तिशाली बनें, बल्कि इसलिए कि वे टूटे हुए को सहारा दें। उन्होंने उन लोगों को छुआ जिन्हें समाज ने छूने से मना किया था। उन्होंने उन आँखों में देखा जिनमें किसी ने उम्मीद नहीं रखी थी। उन्होंने कहा, “हे थके-मांदे और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।” (मत्ती 11:28)

यही नहीं, यीशु मसीह का उद्देश्य केवल जन्म लेना नहीं था, उनका जन्म बलिदान की यात्रा का आरंभ था। वह इसलिए आए ताकि मानवता के पाप का मूल्य चुका सकें। क्योंकि बाइबल कहती है, “पाप की मजदूरी मृत्यु है।” (रोमियों 6:23)

परंतु यीशु ने वह मृत्यु अपने ऊपर ले ली। वह निर्दोष थे, फिर भी उन्होंने दोषियों का दंड सहा। क्रूस पर उन्होंने कहा, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।” उनके लहू से मानवता को क्षमा मिली, उनके पुनरुत्थान से आशा मिली, और उनके प्रेम से जीवन का अर्थ मिला।

इसलिए, यीशु का जन्म केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि ईश्वर के उद्धार की घोषणा है। वह इसलिए आए ताकि हम अंधकार से प्रकाश में आ सकें, पाप से क्षमा में, और मृत्यु से अनंत जीवन में।

जन्म केवल शुरुआत थी

अक्सर हम क्रिसमस को केवल एक उत्सव समझते हैं, गीत, रोशनी, सजावट, उपहार…, परंतु क्रिसमस का सच्चा अर्थ है आत्मिक पुनर्जन्म। यीशु इसलिए जन्मे ताकि हम आत्मिक रूप से नए जन्म को पा सकें। क्योंकि बाइबिल कहती है, “यदि कोई नया जन्म न पाए, तो वह परमेश्वर के राज्य को नहीं देख सकता।” (यूहन्ना 3:3)

उनका जन्म यह संदेश देता है कि, हर अंधकारमय जीवन में प्रकाश संभव है, हर टूटे दिल में नई आशा जन्म ले सकती है, और हर पापी मनुष्य क्षमा प्राप्त हो सकता है।(यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ? )

क्रूस तक की यात्रा – जन्म का असली उद्देश्य

यीशु का जन्म एक कहानी की शुरुआत नहीं, बल्कि एक योजना की शुरुआत था, उद्धार की योजना की, जो क्रूस तक की यात्रा से पूरा होना था।

इसलिए यीशु का जन्म क्रूस की दिशा में था। उनकी नन्ही हथेलियाँ जो चरनी में थीं, एक दिन उन पर कीलें ठोकी जानी थीं, ताकि हमारी मुक्ति पूरी हो सके।

यह कहानी दुखद नहीं, बल्कि विजयी प्रेम की कहानी है। क्योंकि उनके बलिदान के द्वारा हमें अनन्त जीवन मिला। “वह हमारे अपराधों के कारण घायल किया गया, हमारे अधर्म के कारण कुचला गया।” (यशायाह 53:5)

उनका जन्म — परमेश्वर का उत्तर था, हर उस आँसू के लिए जो मानव ने पाप में बहाया था।

इसलिए हर बार जब आप क्रिसमस की रोशनी देखें, तो याद करें, वह रोशनी उसी ने दी है, जिसने स्वयं अंधकार सहा था। वह इसलिए जन्मा, ताकि आप और मैं फिर से जन्म ले सकें।

पुनरुत्थान — जन्म की पूर्णता

अगर यीशु केवल जन्मे और मरे होते,तो यह कहानी अधूरी रहती। परंतु तीसरे दिन वे मृतकों में से जी उठे, और यही उनका जन्म का सच्चा उद्देश्य पूरा हुआ, क्योंकि यदि वह जन्मा, मरा और फिर से जी उठा, तो इसका अर्थ है कि जीवन, मृत्यु से शक्तिशाली है।

उनका पुनरुत्थान यह प्रमाण है कि परमेश्वर का प्रेम मृत्यु से भी शक्तिशाली है। बाइबिल बताती है, “मैं पुनरुत्थान और जीवन हूँ; जो मुझ पर विश्वास करता है वह यद्यपि मर जाए, तो भी जीवित रहेगा।” (यूहन्ना 11:25)

यीशु जन्म मृत्यु को हराने के लिए हुआ था, ताकि हर विश्वास करने वाला कह सके, “अब मैं जीवित हूँ, क्योंकि मसीह मुझमें जीवित है।”

आज के युग के लिए उनका संदेश

आज जब दुनिया चकाचौंध, रोशनी, और उपहारों में डूबी है, तब क्रिसमस हमें याद दिलाता है कि, परमेश्वर ने भी हमें एक उपहार दिया, यीशु मसीह। यह वह उपहार है जो कभी पुराना नहीं होता, जो हर आँसू में शांति और हर निराशा में आशा देता है।

यीशु का जन्म हमें सिखाता है कि, परमेश्वर किसी महल में नहीं, बल्कि नम्र हृदय में जन्म लेता है। वह वहीं आता है जहाँ कोई उम्मीद नहीं बची होती, ताकि वहाँ नई शुरुआत हो सके।

अगर आज तुम्हारा जीवन भी संघर्ष, अपराधबोध या टूटन से भरा है, तो यह संदेश आपके लिए है, “मत डरो, उद्धारकर्ता आ चुका है।” वह आज भी दरवाज़े पर खड़ा है और कहता है, “देख, मैं द्वार पर खड़ा होकर खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुने और द्वार खोले, तो मैं उसके भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा।” (प्रकाशितवाक्य 3:20)

9. निष्कर्ष –यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ?

यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ? तो यीशु मसीह का जन्म इसलिए हुआ कि, मनुष्य को उसका असली मूल्य और उद्देश्य मिले। क्रिसमस हमें याद दिलाता है कि, उद्धार कोई धर्म नहीं, बल्कि एक संबंध है, मनुष्य और परमेश्वर के बीच का टूटा हुआ रिश्ता, जिसे यीशु ने जोड़ दिया। उनका आगमन हमें याद दिलाता है कि, परमेश्वर हार नहीं मानता, वह अब भी प्रेम करता है, और हर आत्मा को अपने पास बुला रहा है। “शांति पृथ्वी पर उन मनुष्यों में हो जिनसे वह प्रसन्न है।” (लूका 2:14)

वह इस संसार में इसलिए आए कि जो टूटा है, वह फिर से जुड़ सके; जो खो गया है, वह मिल जाए; जो मर गया है, वह फिर जी उठे। इसलिए हमारी आत्मा में यह सत्य गूँज उठना चाहिए कि, “परमेश्वर ने मुझसे प्रेम किया है।”

तो इस क्रिसमस पर केवल उत्सव न मनाएँ, उस प्रेम को पहचानें जिसने स्वर्ग को छोड़कर धरती को गले लगाया। क्योंकि जब परमेश्वर ने यीशु को भेजा, उन्होंने दुनिया को नहीं, तुम्हें चुना।

इसलिए जब आप अगली बार “मेरी क्रिसमस” कहें, तो यह केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि एक घोषणा हो कि “परमेश्वर हमारे संग है।”

अंतिम विचार

आज जब आप “यीशु मसीह का जन्म क्यों हुआ? ” इस लेख को पढ़कर चुपचाप बैठे हैं, तो अपने दिल में एक प्रश्न उठने दें, “क्या यीशु मेरे भीतर जन्म ले चुके हैं?”

यदि नहीं, तो आँखें बंद करें और बस कहें, “प्रभु यीशु, मेरे जीवन में जन्म लीजिए, मेरे पापों को क्षमा कीजिए, और मुझे नया जीवन दीजिए।”

यकीन मानिए वही क्षण आपका सच्चा क्रिसमस होगा। वही क्षण जब परमेश्वर मुस्कुराएगा और कहेगा, “मेरा पुत्र, मेरा पुत्री… अब तुम मेरे हो।”

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